Saturday, September 25, 2010

कसार!

कसार! ...एक हरियाणवी पकवान...
जी हाँ !...
यही नाम है इस हरियाणवी खाजे (पकवान) का ....
हम क्यों भूलते जा रहे हैं अपने रीती रिवाज...
क्या हम इन से नहीं हैं?
मैने मम्मी के साथ कल कसार बनाया ...इसे थोड़ा सा घी डाल कर खाया...बहुत स्वादिस्ट लगा!
मुझे याद है मेरी दादी ढेरों कसार बनाकर रखती थी ...हम ज़ब भी भूख लगती इसे घी डाल कर खाते थे ।
गेहूँ के आटे से गुड के साथ हलकी चूल्हे की आंच पर लोहे ki कढाई में बना यह खाजा ...पौष्टिकता से भरपूर है.


बोतल में डाल कर रखा कसार कटोरी में डाल खाने के लिए तैयार है.




मम्मी के बनाये पुराने कपडे से चोटी गूँथ कर बनाया यह कोस्टर , जिस पर कसार की कटोरी रखी है ..
क्या खुबसूरत लग रहा है.


कोस्टर और कसार को निहारना मुझे बहुत भला लग रहा है....
हर बेकार चीज को उपयोगी बनाना मैने बचपन से ही अपने पिताजी से लिया था ....
ग्रीन लिविंग और टिकाऊ जिन्दगी हमारा व्यवहार रहा है...
कसार बनाने का तरीका फ़िर कभी!
सुभावली!
अंत में बेटी की एक कविता......
अनुभूतियाँ
कुछ अनुभूतियाँ
सिमट रह जाति हैं
दिल के घेरे में।
बस यहीं की होकर
रह जाती हैं।
सदा-सदा के लिये
वहीं जमी रहती है
पलवित होती
पोषित होती
निखरती रहती है।
समय की परत
चढने में ासमरथ रहती है।
ताज़ी रहती है
सुगंधित फूलों की तरह
महकती है इत की मानिंद
सदा सजी-संवरी रहती है
नई दुलहन सी।
सुरकसित बालक सी छुपी रहती है
दिल के आँचल को ओढे
पीङा भी देती है
कभी-कभी
रिसते घाव सी।
कुछ अनुभूतियाँ
सिमट रह जाती हैं
दिल के घेरे में
----विपिन चौधरी
खुश रहना इबादत है!