Friday, September 6, 2013

Rain Rain.....



Sit and rest awhile...close your eyes...

and breathe deeply to inhale the scent of recently fallen rain.


XOXO

Thursday, September 5, 2013

गुद्डे



हाँ ये बेबे गुद्डे तो वो ये सुहाया करदे जो रेता मैं सुख्या करदे इसे हो जांदे फोके-फोके। .......... ईसी नींद आया करदी नरम हो जांदे जमाये. अर  तार पर सुखयोड़े गुदडे  तो इसे हो जां सैं   करड़े - करड़े  अर  पीले दाग न्यारे हो जाँ  सें। .सुन कीं मेरे भी याद आगी जोहड़ धोरे गुमड़े  से   गुमड़े  से  मने  मेरी दादी पा पूछा दादी ये के सें दादी बोलीबेती अडै  लट्टे सुखा राखे सें  दामन आर गुदडे   मोटे लत्ते जो कई हाँ मैं सुखें उन्नें लत्ते  मैं बांद  कीं   आर रेता मैं दाब दिया करैं आर रेता उनकी नमी नैं चूस लें सैन आर वाई हवा मैं सुखायोड़े लत्तां तेन भी सुथरे हो जाँ  सें
आज मैंने पार्क में यह चर्चा सुनी। .  
xoxo

Sunday, September 1, 2013

Finger-less Mitten Gloves



 

Finger-less Mitten Gloves:
its on number 1 on my to do list 
  happy crocheting!

Steel City Street Styles: On the street....Marion St.

Steel City Street Styles: On the street....Marion St.: Love that studded bag! Name: Michelle Age: 42 Occupation: IT Release Manager Favourite Designer/Clothing Store: Winner's + Value Vil...

लाओत्से



"शब्दों में दयालुता आत्मविश्वास पैदा करता है. सोच में दयालुता गंभीरता बनाता है. देने में दयालुता प्यार बनाता है "- लाओत्से
लाओत्से को बहुत कम लोग जानते हैं। जितना ऊंचा हो शिखर, उतनी ही कम आंखें उस तक पहुंच पाती हैं। जितनी हो गइराई, उतने ही कम डुबकीखोर उस गहराई तक पहुंच पाते हैं। सागर की लहरें तो दिखाई पड़ती हैं, सागर के मोती दिखाई नहीं पड़ते हैं।


लाओत्से की गहराई सागरों की गहराई है। कभी कोई गहरा डुबकीखोर वहां तक पहुंच पाता है। जगत डुबकीखोरों से नहीं बना हुआ है। जगत तो उनसे चलता है, जो लहरों पर तैरने वाली नाव बना लेते हैं। आदमी को उस पार जाना होता है; आदमी को सागर की गहराई में जाने का प्रयोजन नहीं होता। तो जो नाव बनाने का विज्ञान बता सकते हैं, वे प्राथमिक रूप से महत्वपूर्ण हो जाते हैं।

अरस्तू महत्वपूर्ण हो गया। क्योंकि अरस्तू ने जो तर्क दिया, वह संसार के काम का है। चाहे दूर जाकर खतरनाक सिद्ध हो, लेकिन पहले कदम में बहुत प्रीतिकर है। चाहे अंतिम फल जहरीला हो, लेकिन ऊपर मिठास की पर्त है। तो अरस्तू की बात समझ में आएगी, क्योंकि अरस्तू शक्ति कैसे उपलब्ध हो, इसके सूत्र दे रहा है। और लाओत्से शांति कैसे मिले, इसके सूत्र दे रहा है। यद्यपि शांति ही अंतिम रूप से शक्ति है, और शक्ति अंतिम रूप से सिवाय अशांति के और कुछ भी नहीं है।

लेकिन प्राथमिक रूप से ऐसी बात नहीं है। अरस्तू के रास्ते पर चलिए तो एटम बम तक पहुंच जाएंगे। और लाओत्से के रास्ते पर चलिए तो एटम बम तक नहीं पहुंचेंगे। लाओत्से के रास्ते पर चलिए तो लाओत्से पर ही पहुंच जाएंगे, और कहीं नहीं। तो जिन्हें यात्रा करनी है, उनके लिए तो अरस्तू ही अच्छा लगेगा। क्योंकि कहीं-कहीं-कहीं पहुंचते रहेंगे, चांद पर पहुंचेंगे--दूर! लाओत्से पर तो वे ही लोग यात्रा कर सकते हैं, जो यात्रा नहीं ही करना चाहते हैं। बस, लाओत्से पर ही पहुंच सकते हैं। न किसी चांद पर, न किसी तारे पर, न किसी अणु बम पर, कहीं भी नहीं। फिर हमारे मन में, सबके मन में, शक्ति की आकांक्षा है, महत्वाकांक्षा है। धन चाहिए, शक्ति चाहिए, पद चाहिए, यश चाहिए, अस्मिता चाहिए, अहंकार चाहिए। लाओत्से की हम सुनेंगे और भाग खड़े होंगे। क्योंकि हमारा सब कुछ छीन लेने की बात है वहां। हमें लाओत्से देता तो कुछ भी नहीं, ले सब लेता है। और हम सब भिखमंगे हैं। हम भिक्षा मांगने निकले हैं। लाओत्से के पास हम जरा भी न टिकेंगे। क्योंकि हमारे पास और जो है, भिक्षापात्र है, शायद वह भी छीन ले!