Monday, September 16, 2013

रमेश भाई ओझा

रमेश भाई ओझा मुझे सबसे प्रभावी संत लगते हैं मुझे श्री मुरारी बापू भी पसंद हैं। ........ 


रमेशभाई द्वारा बोला गया  ताण्डव स्तोत्र  ..

भाई जी- रमेश भाई ओझा कहते हैं दुनिया में तीन तरह के लोग होते हैं साधक, सिद्ध और विषय भोगी। अयोध्या साधकों, मथुरा सिद्धों और लंका विषयी लोगों की प्रतीक हैं। शास्त्रों ने शरीर को रथ, इंद्रियों को घोड़ा, मन को लगाम और बुद्धि को सारथी कहा है। अगर हमारी बुद्धि, इंद्रियों के घोड़ों को मन की लगाम से नियंत्रित करना सीख जाती है तो मोक्ष का मार्ग पार हुआ समझिए।
यह शरीर बहुत ही दुर्लभ और मूल्यवान है। इसे हमेशा परमार्थ में लगाना सीखिए, निरंतर सत्कार्य करना सीखिए। प्रेम से किया गया कर्म, यज्ञ के समान होता है। हर काम पवित्र भाव से करो, प्रेम से करो, परमार्थ को केंद्र में रख कर करो तो हर कर्म का फल यज्ञ जैसा मिलेगा। राम के जीवन को देखिए, सारा काम पवित्र भाव से किया, परमार्थ के लिए किया। उनका जन्म सिर्फ रावण वध के लिए नहीं हुआ था, वो तो भक्तों के दुःख दूर करने के लिए अवतरित हुए थे।

 

जब मैं छोटी थी और हम जामनगर में रहते थे तब दिवाली की छुट्टियों में हम द्वारका गए थे। द्वारका जामनगर जिले में पड़ता है. मेरे पिताऔर मेरे दादा दोनों ही श्री कर्षण भगवान् के भक्त थे.वे हमें मथुरा और व्रन्दावन भी घुमा कर लाये थे.
ऊपर दी गई तस्वीर आपना नाम उध्वेलीत  करने में रूची नही रखते

द्वारका जाते समय हम पहले पोरबन्दर गए पोरबंदर से द्वरका 100 किलोमीटर है। रास्ता समंदर के साथ साथ चलता है।रात हम प्पोर्बंदर की एक धर्मशाला में थारे मुझे आज भी याद है की पोरबंदर में मच्छर  बहुत थे रात को मच्छरों ने बहुत काटा था. और द्वारका में हम  जिस धर्मशाला में रुके थे उसके पीछे घुमाने निकले तब देखा की वहां घर सुने पड़े थे बसासत बहुत कम थी यह कोई १९६२-६२ की बात है.

रमेश भाई ओझा का आश्रम ( संदीपनी आश्रम ) पोरबन्दर में ही है.
मुझे आज भी याद है कि जो गाईड हमने लिया था वह बहुत लंबा था उसने सफ़ेद धोती और कुर्ता पहन रखा था उसने ईशारे कर हमें बताया  कि यहाँ के आस-पास की १३ किलोमीटर ज़मीन  बहुत बंजर है इसमें तिनका भी नहीं उगता दुर्वासा ऋषी के श्राप से एसा हुआ था.  (उन्होंने किसको क्यों श्राप दिया जो उसने बाताया था मुझे याद नहीं) आयर ना ही गूगल में मुझे कहीं ऐसे श्राप के बारे में मुझे कुछ मिला)

रमेश भाई ओझा का ८८-८९ में टोरंटो कनाडा   संपन्न   हुआ  श्रीमद  भागवत कथा  कार्यक्रम का एक दुर्लभ वीडियो देखने के लिए इस लिंक पर चटकाएं

शब्बा खैर !


Friday, September 6, 2013

sofa repair, the plarn mat


You might have spotted the sofa in my living room already but here's a better shot of them.  We will have them reupholstered professionally in the future but it's pretty expensive so I will have to save up for it.  In the meantime I have bought new foam for the seats and backs.  Then I spotted an amazing fabric that was reduced from Rs 400 per metre to only Rs100 per metre! 


How is that for a bargain!  And it was reversible so I've done one sofa chair in each plaid, one with a old foam, the other with a new foam.  When I say "I've done them" I mean I've wrapped fabric around each sofa chair and fastened it to see what it looks like and to convince my MOM that it wasn't too bad!!  Now I have the challenge of stitching it in place.  I am really happy with the result and am quite happy to have them like this until they can be covered properly.  This



new little sitting area has become a favorite spot for the whole family.  Before, it was a space covered in boxes and boxes but they have been moved to the other end of the room.  The children love sitting here to read, My niece lounges in the sun most days and the my daughter-in-law  grab a quick sit-down whenever she can!

plarn mat 


xoxo

The huge ripple



Slowly adding rows to the blanket. I know you can't really tell from this picture, but there are at least another 3 rows added since the blanket last made its appearance on the blog..



The other day I mentioned my problem with big ripple, so what now? Well,   (someone else did too, I think) suggested that I simply cut off one end of it. With scissors. Cut into crochet! I'd never heard of such a mad notion before. But thinking about it: it made total sense!


 

My ripple and some organization tips




Another wip. I started this several months ago, but then never really got anywhere because I had to take a crochet break because of my thumb being weird. Anyway, I did a couple of rows yesterday and this morning I tried it on the bed. Too big. Like... waaay too big, hanging off the sides of the bed with about a foot to spare on each side.

What the heck do I do now? I am considering frogging it and starting over a bit smaller. But considering that each row takes around 45 minutes..yeah, that's not gonna happen! So I am thinking that maybe I'll just fold the surplus at the side, sew it to the 'back' of the blanket and then keep going like it's a smaller blanket. What do you reckon? What would you do? Any crochet 'rescue' ideas out there?



Utensils-01

HERE are the better organization ways

XOXO