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Saturday, July 30, 2016

nostalgia,village,spinning

यह उन दिनों की बात है जब मैं छठी कक्षा में पढ़ती थी मुझे आगरा में मिड सैशन में किसी स्कूल  में दाखिला नहीं मिला तब मेरे पिताजी ने मुझे और मेरी छोटी बहन को गाँव में छोड़ा गाँव में पांचवी कक्षा तक स्कूल था अतः मुझे तोशाम के मिडिल स्कूल में दाखिल दिलवा दिया गया।  गाँव में रहते मैं अपने आस-पास की लड़कियों से जो स्कूल  नहीं जाती थी कुछ न कुछ सीखती रहती थी।  

आक का पौधा 
आक का फाहे निकला डोडा साथ में आक के बीज भी दिखाई दे रहे हैं 
उन्हीं दिनों आक के डोडे तोड़ कर उस में से बीज दूर कर कपास जैसे फाहे निकाल कर  उन्हें चरखे पर कात  लिया जाता था और उस रुई जैसे फाहे  को रंग कर गलीचे बनाये जाते थे। छुट्टियों में मैं भी मेरी हम उम्र बुआ के साथ आक के डोडे खेतों की मेंड़ों के किनारों और बणी में से तोड़ कर  लाई और मेरी दादी ने उन्हें काता आक के डोडों की रुई को कातना बहुत मुश्किल होता था मैंने भी कातने की कोशिश की और काफी काता  भी।  डोडों में से फाये उड़-उड़ जाते थे और नाक में भी चढ़ जाते थे कातते समय मुँह  पर ढाठा/ कपड़े का नकाब बांन्धना   पड़ता था। खैर मैंने भी एक छोटा सा गलीचा आक के डोडों से बनाया परन्तु वह ज्यादा टिकाऊ नहीं था उसके रेशे  बल / धागों पर लगाए जाने वाला बट नहीं सहन कर सकते थे और बल खुल कर उधड़ जाते थे।  फिर कुछ दिनों बाद उनका रिवाज जाता रहा।  परन्तु हैरान करने वाली बात यह है कि वह गलीचे हरियाणा के हर कोने में बनाये गए थे जैसा कि यहां हरियाणा में रहते आज भी मैं हरियाणा के विभिन्न हिस्सों की औरतों से पूछ लेती हूँ। 


xoxo