Thursday, May 3, 2018

Harvard President Drew Faust's report to alumni (2011)



GLOBALIZATION was also a theme in President Drew Faust’s address. Both speakers noted the changes that swept the Middle East this year in the Arab Spring.
Harvard’s student body is increasingly international—20 percent, Faust said. She noted the “intensity” of undergraduates’ interest in foreign languages: “They understand the kind of world they will live in, and they want to be prepared.” She mentioned numerous University international initiatives, and pointed out that she  has visited five continents during her presidency.
xoxo

Tuesday, April 17, 2018

Northeast Ohio Rocks!: Mike Got Kerried Away

Northeast Ohio Rocks!: Mike Got Kerried Away: The boys first met one another when they were placed on the same baseball team. Mike, Dustin, Eric and Wayne would soon learn the meaning of...

Wednesday, January 17, 2018

nostelgia,village,its me


पार्क में यह पेड़ (झाड़) देख् 
बचपन के वो दिन, ना जाने कैसे, मुझे आज याद आ गए? हम गांव रह रहे थे सामणी काटने के बाद खेत उजाड़ हो चले थे मैं कोई 10-11 वर्ष की रही होंगी फिर स्कूल से छुट्टी होंने पर हम पास के टिब्बों के खेतों में निक़ल जाते और डोलों(fencing of the farms,Divider between fields ) पर लगी ढेरों झाड़ बेरियों पर से बेर तोड़ कर लाते और उन्हें कोरी कुल्हडियों( टेरा कोट्टा)  में भर लेते! टिब्बे  घर के इतनी पास भी न थे ! पर टिब्बे ओर छोटी-छोटी पहाड़ीयों पर उगे बेरी के झाड़ मानो हमें बुलाते थे ! 



goliye


उन पर लगी लाल पीली बेरियां हमें सपने में भी मानो आवाज़ लगातीं ! रास्ते भर हम तरह- तरह की बातें करते रहते ! “बेरी खाने से दिमाग़ तेज़ हो जाता है ! जब मेरे चाचा ताऊ के बच्चे और पड़ोस के बच्चे मिल कर खूब सारे बेर ले आते तो मेरे दादा कहते आज तो बड़ा काम करया भाई !आज तो दाड़ा (To get something free of cost) मार ल्याए।मेरे दादा ने कहा है कि अगर बेरी खाओगे तो पढ़ाई में तुम्हारे खूब अच्छे नंबर आयेंगे !” गोया बेरी ना हो गई अमर फल हो गई ! पर सच्ची बात तो ये थी कि बिना पैसे के ये फल अमर फल से कम नहीं थे ! ना कोई डाँटने वाला, ना कोई भगाने वाला ! बेरी तोड़ते तोड़ते कितने ही काँटे पैरों में घुस जाते ! कितने ही हाथों को बींध देते ! पर हाय रे बेरी का लालच ! 

terra cota bins



वो कतई कम नहीं होता ! अब कहाँ वह् बेरियाँ और  फिर इन्हें काट कर बाड़ बना ली जाती और होली के दिनों में बच्चे यह बेरी के ढिक्खर फाड़-फाड़ कर गांव के फलसे(The outer area of a village) में बड़ी सारी होली बना देते अब कहाँ बाड़( The thorny fence ,made-up with agriwasre and specialy of )
 
और कहाँ वो  ढिक्खर  !???????

xoxo

Monday, August 15, 2016

my grandma, nostelgia


My grand ma had to work a lot and there was just no opportunity for women to stay home and take care of their children,she had to take care of cattles(collect their dung,make cow dung cakes clean cattle shed)she had to fetch water from well,churn milk, after household and animal husbandry tasks she had to go to farm for rest of the day and return home at dusk . Just like grand ma, I spent my childhood, all school breaks in a remote village with no electricity, TV or other advantages of civilization. I am not regretting it, it was a very happy childhood. We were always outside, playing, reading, helping in the nohara (A semi-covered area with some boundary for keeping the livestockavar ) and our farm   the whole day. We didn’t have electricity, reading good books with the kerosene lantern  light, no refrigerator, storing the food underground, no washing machine, walking miles on sandy path  and washing the clothes in the pond water, no market in the village , picking up our fresh veggies like guavar fali, channa saag, saangari, kaachri, kaachar,petha,ghiya,tindsi from our farm and bitoda area  and getting the water from the well (it was my favorite activity ever!!!).
my grandma's resemblance


my grandma's blouse

My  Gandma was a very important person in my life, a hardworking and loving woman. And she left such an important impact on my life. Gandma left Bagar, her birth place after her marriage when she was 12  years of age and now lives  in Bhiwani District of Haryana   One year she went  to spend her vacation with her parents who live in her grandparent’s house  and she found there a bag full of yarn that was hand-spun by my grandma’s  grandma  many  years ago. She brought that yarn with her when returned to her own house It was so inspiring and emotional to see this yarn and it was a beginning of a wonderful journey of creating something absolutely unique – raw minimally processed traditional Haryanvi  desi cotton. And this is how my love for hand spun raw cotton yarn developed. And I learned all the spinning related tasks including preparing charkha to spun. 

xoxo

Friday, August 12, 2016

nostelgia,itsme

जब 68 में हम न्यारे हुए तब मेरे दादा ने हमें कुछ 17 बीघे जमीन खेती करने के लिए दी वह हमारा नोइआला खेत था जो 40 बीघे  का खेत था। दादा ने जो हिस्सा हमें दिया वह गाँव से खेत आते सबसे पहले पड़ता था  उसमें एक बड़ा टिब्बा था और पूरा खेत डाब घास से लबालब भरा था डाब घास इतनी घनी थी कि  इसमें उपज होना नामुमकिन था। खैर हमने सावन की बाजरे की फसल के लिए खेत का सुड़ काटा मैंने नौवीं कक्षा पास की थी और न्यारे होने  और  मम्मी के बीमार होने की वजह से मैंने दसवीं कक्षा में दाखिला नहीं लिया और पूरी तरह से घर,खेत,डंगर- ढोर के कामों में लग गई थी।   साढ़ी की फसल के बाद जेठ- साढ़ में सावनी की फसल के लिए खेत का सुड़ काटना था। मैंने और मम्मी  ने सुड़ काटा खेत में डाब के साथ-साथ झाड़ियां,बुई,ख़र्सणे ,भरुँट और भी कई किस्म के घास थे झाड़ियों का तो इतना बड़ा हिस्सा था कि कसोले से उन्हें काटते हुए साथ में जेली भी रखनी होती थी जिससे उन्हें समेटते हुए गद्दे से बना लिए जाते थे। खेत साफ़ हो गया बरसात होने के बाद जिन दिनों बुआरे का समय आया तब हमने ल्हास (खेत बिजवाने  के लिए किया जाने वाला प्रयोजन )की इसके लिए हमारे कुनबे के मेरे दादा दयाचंद जिनके मेरी मौसी (ममी की चचेरी बहन )ब्याही हुई थी उन्हें और एक दूसरे व्यक्ति को रखा। उन्होंने हमारे खेत में ऊंट से हल जोत कर बाजरा,मुंग,मोठ और ग्वार  के बीज बोये। उन बीजों में कुछ काकड़ी मतीरों के बीज भी डाल दिये थे।  ल्हास  में  लगाये गये हालियों के लिए खाना स्पेशल बनाना होता था जिसमें रोटी-सब्जी के साथ खांड-बुरा भी परोसी जाती थी, सो मम्मी ने  खूब तर खाना  बनाया।  खेत में बुआरा होने पर हम शाम को बहुत खुश हो घर लौटे थे।  कुछ ही दिनों में जब हम बुआरा देखने खेत गये तब हरियाली खूब थी परन्तु वह ज्यादा डाब घास की वजह से ही थी फसली पौधे मरे-मरे से थे ,हां काकड़ी -मतीरों की  बेलें खूब थी। खैर समय पर बरसात हुई फसल बढ़ी हमनेकसौलों से  निनाण कर उसमें से खरपतवार निकाली जिससे फसल की खुदाई भी हो गई और फ़सल पक कर तैयार हो गई। अब फसल काटने का समय आया। 

xoxo

diary1968

जब 68 में हम न्यारे हुए तब मेरे दादा ने हमें कुछ 17 बीघे जमीन खेती करने के लिए दी वह हमारा नोइआला खेत था जो 40 बीघे  का खेत था। दादा ने जो हिस्सा हमें दिया वह गाँव से खेत आते सबसे पहले पड़ता था  उसमें एक बड़ा टिब्बा था और पूरा खेत डाब घास से लबालब भरा था डाब घास इतनी घनी थी कि  इसमें उपज होना नामुमकिन था। खैर हमने सावन की बाजरे की फसल के लिए खेत का सुड़ काटा मैंने नौवीं कक्षा पास की थी और न्यारे होने  और  मम्मी के बीमार होने की वजह से मैंने दसवीं कक्षा में दाखिला नहीं लिया और पूरी तरह से घर,खेत,डंगर- ढोर के कामों में लग गई थी।   साढ़ी की फसल के बाद जेठ- साढ़ में सावनी की फसल के लिए खेत का सुड़ काटना था। मैंने और मम्मी  ने सुड़ काटा खेत में डाब के साथ-साथ झाड़ियां,बुई,ख़र्सणे ,भरुँट और भी कई किस्म के घास थे झाड़ियों का तो इतना बड़ा हिस्सा था कि कसोले से उन्हें काटते हुए साथ में जेली भी रखनी होती थी जिससे उन्हें समेटते हुए गद्दे से बना लिए जाते थे। खेत साफ़ हो गया बरसात होने के बाद जिन दिनों बुआरे का समय आया तब हमने ल्हास (खेत बिजवाने  के लिए किया जाने वाला प्रयोजन )की इसके लिए हमारे कुनबे के मेरे दादा दयाचंद जिनके मेरी मौसी (ममी की चचेरी बहन )ब्याही हुई थी उन्हें और एक दूसरे व्यक्ति को रखा। उन्होंने हमारे खेत में ऊंट से हल जोत कर बाजरा,मुंग,मोठ और ग्वार  के बीज बोये। उन बीजों में कुछ काकड़ी मतीरों के बीज भी डाल दिये थे।  ल्हास  में  लगाये गये हालियों के लिए खाना स्पेशल बनाना होता था जिसमें रोटी-सब्जी के साथ खांड-बुरा भी परोसी जाती थी, सो मम्मी ने  खूब तर खाना  बनाया।  खेत में बुआरा होने पर हम शाम को बहुत खुश हो घर लौटे थे।  कुछ ही दिनों में जब हम बुआरा देखने खेत गये तब हरियाली खूब थी परन्तु वह ज्यादा डाब घास की वजह से ही थी फसली पौधे मरे-मरे से थे ,हां काकड़ी -मतीरों की  बेलें खूब थी। खैर समय पर बरसात हुई फसल बढ़ी हमनेकसौलों से  निनाण कर उसमें से खरपतवार निकाली जिससे फसल की खुदाई भी हो गई और फ़सल पक कर तैयार हो गई। अब फसल काटने का समय आया। 

xoxo