जब 68 में हम न्यारे हुए तब मेरे दादा ने हमें कुछ 17 बीघे जमीन खेती करने के लिए दी वह हमारा नोइआला
खेत था जो 40 बीघे का
खेत था। दादा ने जो हिस्सा हमें दिया वह गाँव से खेत आते सबसे पहले पड़ता था
उसमें एक बड़ा टिब्बा था और पूरा खेत डाब घास से लबालब भरा था डाब घास इतनी
घनी थी कि इसमें उपज होना नामुमकिन था। खैर हमने सावन की बाजरे की फसल के
लिए खेत का सुड़ काटा मैंने नौवीं कक्षा पास की थी और न्यारे होने और
मम्मी के बीमार होने की वजह से मैंने दसवीं कक्षा में दाखिला नहीं लिया और
पूरी तरह से घर,खेत,डंगर- ढोर के कामों में लग गई थी। साढ़ी की
फसल के बाद जेठ- साढ़ में सावनी की फसल के लिए खेत का सुड़ काटना था। मैंने और मम्मी ने सुड़ काटा खेत में डाब के साथ-साथ झाड़ियां,बुई,ख़र्सणे ,भरुँट और भी कई किस्म के घास थे झाड़ियों का तो
इतना बड़ा हिस्सा था कि कसोले से उन्हें काटते हुए साथ में जेली भी रखनी होती थी
जिससे उन्हें समेटते हुए गद्दे से बना लिए जाते थे। खेत साफ़ हो गया बरसात होने के
बाद जिन दिनों बुआरे का समय आया तब हमने ल्हास (खेत बिजवाने के लिए किया
जाने वाला प्रयोजन )की इसके लिए हमारे कुनबे के मेरे दादा दयाचंद जिनके मेरी मौसी
(ममी की चचेरी बहन )ब्याही हुई थी उन्हें और एक दूसरे व्यक्ति को रखा। उन्होंने
हमारे खेत में ऊंट से हल जोत कर बाजरा,मुंग,मोठ और ग्वार के बीज बोये। उन बीजों में
कुछ काकड़ी मतीरों के बीज भी डाल दिये थे। ल्हास में लगाये गये
हालियों के लिए खाना स्पेशल बनाना होता था जिसमें रोटी-सब्जी के साथ खांड-बुरा भी
परोसी जाती थी, सो मम्मी ने
खूब तर खाना बनाया। खेत में बुआरा होने पर हम शाम को बहुत खुश
हो घर लौटे थे। कुछ ही दिनों में जब हम बुआरा देखने खेत गये तब हरियाली खूब
थी परन्तु वह ज्यादा डाब घास की वजह से ही थी फसली पौधे मरे-मरे से थे ,हां काकड़ी -मतीरों की बेलें खूब थी। खैर
समय पर बरसात हुई फसल बढ़ी हमनेकसौलों से निनाण कर उसमें से खरपतवार निकाली
जिससे फसल की खुदाई भी हो गई और फ़सल पक कर तैयार हो गई। अब फसल काटने का समय आया।
xoxo
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