जब मैंने छिकी बनाना सीखा हमारे गाँव के घर में एक देई गाय थी उसका रंग जर्सी गाय जैसा भुरा था .मेरी दादी उस गाय का दूध नहीं बिलौती थी उस गाय के दूध को सिर्फ पिया जाता था। मेरे जहाँ में एक धारणा कि उसे पहले खिन जंगलों में छोड़ा होगा इस तरह वह देई गाय बनी होगी मैंने यह धारणा अपने-आप बना रखी थी घर में किसी से पूछे बिना उसके बारे में घर में तो यही कहा जाता था कि इस गाय को देई छोड़ रखा है। मेरी दादी उस गाय के दूध को अलग से हमारी हवेली के आँगन में बने हारे में गर्म किया करती थी उस हारे को धरती में गाड़ कर बना रखा था उस पर छत बनी थी और उसके आगे लकड़ी का दरवाज़ा बना था जिसको दिन में मेरी दादी ताला लगा कर रखती थी क्योंकि उस हवेली में कुल तीन परिवार रहते थे एक हमारा दूसरे मेरे पिताजी के एक चाचा और रक ताऊ का परिवार साथ ही हवेली का मुख्य दरवाजा दिन में हमेशा खुला रहता था सो चोरी के मेरी दादी उस हारे को ताला लगाती थी।
एक दिन मेरे चाचा देई गाय के बछड़े के मुंह पर बाँधने के लिए छिकी बना रहे थे उसे वे कुटी हुई मुंज की रस्सी बनाते हुए जाली के रूप में गूँथ रहे थे मैंने भी उत्सुकता पूर्वक चाचा से छिकी बनानी सीखी बहुत मुश्किल से बना पाई थी। चिक्की को गाय के बछड़े के मुंह पर बाँध देते थे और उसे उछल-कूद करने को खुला छोड़ देते थे वह नोहरे में खूब उछल-कूद करता था उसकी माँ देई गाय खूंटे पर बन्धी और वह छिकी बंधी होने पर उसका दूध नहीं चूंघ पाता था।
गाँव के पाली भी अपने हाथों में ढेरों छिकियाँ लिए होते थे वे जब गायों को चराने अढ़ावे में जाते थे तब कई अड़ियल गायें जो रास्ते में खड़ी फसलों को खाने की कोशिश करती थी उनके मुंह पर भी छिकी बाँध क्र रखते थे और कई बार कई दिन की ब्याई गायों के साथ जब उनके बछड़े-बछड़ियाँ भी करने के लिए साथ जाते थे तब उनके मुंह पर भी छिकी बाँध दी जाती थी।
छिकी बंधी गाय
xoxo
xoxo
This comment has been removed by a blog administrator.
ReplyDelete